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कुत्ते

आह्वान
आह्वान
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पास के गावं में ,
बरगद की छावं में ,
कुत्ते ,
एक दुसरे की पूँछ ,
सूंघ रहे थे !
कोई भौंक रहा था ,
कोई लोट रहा था ,
कोई मचल रहा था ,
अपने से बड़े की पीठ पर ,
चढ़ने को !
वातावरण ,
सौहार्द पूर्ण था !
अचानक ,
आकाश में उडती ,
चील की ,
चोंच से छूट कर ,
हड्डी का टुकड़ा ,
आ गिरता है ,
बरगद का पास !
झपट पड़ते है सब ,
दौड़ते ,
गुर्राते ,
एक दुसरे को ,
दांत दिखाते !
माहौल बदलते ,
देर नहीं लगती ,
कुत्तों से हड्डी ,
भला कब तक बचती ?
छाव में बैठे ,पथिक ने,
अखबार ,
एक ओर फेंका ,
और,घूर कर देखा ,
मानों कह रहा हो ,
कोई फर्क नहीं रहा ,
इनमें ,
और ,तुममे !

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