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अब तो चेतो रे !

आह्वान
आह्वान
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गई भोर,और चली दुपहरी,सांझ ढली छाई अंधियारी !
दिवस गया बीता पखवारा,माह थके वर्ष भी हारा !!
छूटा बचपन गया लड़कपन,योवन की दहलीज़ भी लांघी !
आखो ने सपने थे देखे,मन में थी उम्मीदें काफी !!
एक एक कर बिखरे सारे,घर के दीपक ने घर बारे !
झूठी आशा के आँगन में,क्यों हो भ्रमित खड़े ?
अब तो चेतो रे ……
पराधीन जो रहे सो जाने,क्या स्वतंत्रता का है माने !
हमने तो यह मुफ्त में पाई,आना पाई नहीं चुकाई !!
क्या होता है इसका माने ?इसका माने कितने जाने ?
क्यों कोई फिक्र करे इसकी,जब कुछ ना दाम दिए !!
अब तो चेतो रे …….
सामंती वो दौर भी बीता,फिरंगियों ने भारत जीता !
पुरखों ने थी लड़ी लड़ाई,बरछे,भाले,गोली खाई !!
मतवालों ने खून से अपने,आज़ादी की शमाँ जलाई !
बहुत चले बलिदानी पथ पर,हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,इसाई !!
फिर जाकर आज़ादी आई,हमने पाई तुमने पाई !
उनके सपनों का भारत,अब नैतिकता से परे !!
अब तो चेतो रे ……….
कुछ कौवों,कुछ बगुलों ने फिर,ऐसी एक बिछात बिछाई !
तुम्हें सुनहरे स्वप्न दे दिए,उनने मिल सत्ता हथियाई !!
सपनों के इस मकड़ जाल में, मुहबाये क्यों हो खड़े ?
अब तो चेतो रे ,अब तो चेतो रे ……….

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