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तुम्हें क्या मालूम …….

आह्वान
आह्वान
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रहनुमा आज फिर मदहोश मेरे मुल्क के हैं ,
इतिहास गए भूल , तुम्हें क्या मालूम !
फितरतन है मेरे होठों पे तबस्सुम लेकिन ,
दिल है जख्मों से मेरा चूर ,तुम्हें क्या मालूम !
गम की राहों में मेरा साथ कहाँ तक दोगे ?
मेरी मंजिल है बहुत दूर ,तुम्हें क्या मालूम !

बेगुनाह लोग ,और अधजली लाशें ,
वो मंज़र भूलता नहीं है ,तुम्हें क्या मालूम !
दर्द को समेटे ,सुलगती ज़िन्दगी ,
धुवां ही उगलती है तुम्हें क्या मालूम !

आखों ने बुने ख्वाब थे जिनके लिए ,
जा बैठे कितनी दूर ,तुम्हें क्या मालूम !
हर शक्स जैसे आज बेगाना हुवा है ,
कितना हु मैं मजबूर ,तुम्हें क्या मालूम !
वो कारवां जो साथ कल मेरे चला था ,
है आज कोसों दूर, तुम्हें क्या मालूम !

खामोश चाहत मेरी ,न आई लबों पे अब तक ,
तुम चाँद मै चकोर ,तुम्हें क्या मालूम !
दामन में आसमाँ के ,सितारे बहुत है ,लेकिन ,
तुझसा न कोई और ,तुम्हें क्या मालूम !

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