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एक रामायण ऐसी भी …………….?

आह्वान
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हिन्दू देवी-देवता, हिन्दू धर्मग्रंथों, के बारे में कुछ भी अनर्गल बकना आज आम बात हो गई है ! कोई देवी-देवताओ के विवादित चित्र बनता है तो कोई सीता को राम की बहन बताता है ! किसी भी प्रकार के आपत्तिजनक कमेन्ट करने हों तो आप बेख़ौफ़ किसी हिन्दू देवी-देवता पर कर सकते हैं !धर्म-ग्रंथों की अपनी तरह से व्याख्या कर मजाक उड़ा सकते हैं !कोई आपको कुछ नहीं कहेगा !हमारी फिल्म इंडस्ट्री इस मामले में दो कदम आगे है, देवी-देवताओ पर फिल्माए फूहड़ मजाक पर दर्शक का खीसें निकलना,इनको हदें पार करने का निमंत्रण देता है,और ये लोग सीमाएं लाँघ जाते है !
अब ऐ.के.रामानुजन की रामायण देखिये,ये ज़नाब सीता को रावन की बेटी बता रहे हैं !इनके मतानुसार रावन का वध: श्री राम ने नहीं वरन सीता ने किया था !बेशर्मी की हद तो देखिये हनुमान जी को ये रसिक बतलाते हैं ! इतना बेहूदा कृत्य और वो भी सरकार की नाक के नीचे ! इन महाशय द्वारा रामायण पर लिखित उक्त निबंध २००६ में दिल्ली विश्वविघ्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया ! तद्पश्यात २००८ में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् द्वारा हाई कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर की गई ,मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया !अंत में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर चार सदस्यों की समिती बनाई गई की ,इस निबंध को बी.ए आनर्स (इतिहास ) के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाये अथवा नहीं ? विडम्बना देखिये चार मे से तीन सदस्यों को इस निबंध में कुछ भी आपत्तिजनक नज़र नहीं आया ! अब इस मत को पाठ्यक्रम तय करने वाली अकेडमिक कोंसिल के समक्ष रक्खा गया, कोंसिल के १२० सदस्यों में से ११२ सदस्यों द्वारा इसे सिरे से नकार दिया गया !बावजूद इसके आज भी कुछ लोग निबंध को पाठ्यक्रम में शामिल करने की पुरजोर वकालत कर रहे हैं ! उनका मत है की रामानुजन द्वारा इस निबंध को कई बार विभिन्न अन्तराष्ट्रीय सम्मेलनों में प्रस्तुत किया जा चुका है !और तो और भारत में ही आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा २००८ में इसे प्रकाशित किया जा चुका है !
अब यक्ष प्रश्न यह है की ,करोडो हिन्दू-धर्माविलाम्बियों के आराध्य के बारे में उन्हीं के देश में कोई इस प्रकार का आपत्तिज़नक शर्मनाक कृत्य करता है ,और लोग चुप हैं ………………..?????????? .

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