आह्वान
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अडवाणी हे अडवाणी तुम रोज-रोज रथ क्यों नहीं लाते ?
तेरे आने से सडकों के सारे गड्डे हैं भर जाते ,
वर्षों से सड़ता कचरा भी गायब रातों-रात हो गया ,
पटी पड़ी नाली से कीचड़ जैसे कोई जिन्न ले गया ,
झंडे-बैनर बैसाखी के मेले सी हैं याद दिलाते ,
अडवाणी हे अडवाणी तुम रोज-रोज रथ क्यों नहीं लाते ?
अश्व-मेघ सा कृत्य तुम्हारा,किसे जीतने को आतुर है ,
पृष्टभूमि में अभिलाषा ,सत्ता की प्यास लिए व्याकुल है ,
झूठे वादे फिर किसना के बंजर खेत हरे कर देंगें ,
रामदीन के सूखे घट में उम्मीदों का नीर भरेंगें ,
छलनी-छलनी सा यह जीवन,हर बार छला हर बार लुटा ,
फिर भी आशा की डोर से बन्ध,हम तपे जेठ सावन हैं गाते,
अडवाणी हे अडवाणी तुम रोज-रोज रथ क्यों नहीं लाते ?
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