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आज आस्था के नाम पर,धर्म की आड़ में ऐसा घिनोना खेल खेला जा रहा है,जो हमारी सांस्कृतिक मान्यताओं- परम्पराओं में घुन के सामान है ! इन तथाकथित स्वयं-भू साधू/बाबा/माँ जैसों ने इन शब्दों की मर्यादा को अपमानित किया है !
जहाँ तक हिन्दू धर्म का प्रश्न है ,इसकी कोई निश्चित रुपरेखा नहीं !इसके कई पहलू हैं ,जिसने जैसा चाहा वैसा ही मान लिया !साधारण अर्थ में निश्चित रूप से इसकी परिभाषा दे सकना अत्यंत कठिन है !यह सत्य को सर्वोपरि मानने वाला धर्म है !इसके मतानुसार सत्य ही ईश्वर है !विज्ञानं ईश्वर से तो इन्कार कर सकता है लेकिन सत्य को नहीं नकार सकता !और यह धर्म सत्य को ही ईश्वर मानता है ! आस्तिक तो ठीक लेकिन यहाँ नास्तिक के लिए भी स्थान है !और इसी बात का फायदा ये तथाकथित लोग उठा रहे हैं !
आधुनिक जीवनशैली ने विलासिता के साथ साथ अंतहीन प्रतिस्पर्धा भी दी है ! परिणाम-स्वरुप नैतिक पतन तो हुआ ही ,इच्छाओ ,आकांशाओं की विफलता से दुखी लोग शार्ट-कट के चक्कर में इन तथाकथित बाबाओं के मायाजाल में फस जाते हैं ! यह बात सर्वथा समझ से परे है की आज का शिक्षित वर्ग भी कैसे उस परमात्मा को भूल जाता है जिसने सारी कायनात की रचना की है ! ये ढोंगी किसी और का नहीं वरन सिर्फ अपना भला करते हैं !
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