Menu
blogid : 5749 postid : 104

गंगा आये कहाँ से , ये गंगा जाए कहाँ रे ……!

आह्वान
आह्वान
  • 19 Posts
  • 152 Comments

नदियों से इन्सान का बहुत गहरा सम्बन्ध रहा है, सच तो यह है की अनेक सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे ही हुआ है !जिसमें हिन्दू सभ्यता भी एक है ! कालांतर में आर्यों द्वारा उत्तर भारत के मैदानी इलाके में गंगा की तलहटी में एक सभ्यता विकसित की जिसे वैदिक सभ्यता के नाम से जाना गया !आर्यों की भाषा संस्कृत थी और धर्म वैदिक अथवा सनातन धर्म !और यही धर्म आगे चलकर हिन्दू धर्म के नाम से जाना गया !
भारतीय संस्कृति में नदियों के प्रति विशेष आस्था-भाव देखा जाता है !नदियाँ जीवन के साथ-साथ आजीविका का साधन भी हैं !
उत्तराखंड के कुमायूं में गोमुख नामक स्थान से,गंगोत्री नाम के हिमखंड से निकली भागीरथी नदी हिमखंडो की छोटी-छोटी धाराओं को स्वयं में समाहित करती,पहाड़ी सौंदर्य से परिपूर्ण,अल्हड नवयौवना सी ,उछलती-इठलाती बड़ी-बड़ी चट्टानों से टकराती निरंतर आगे की ओर बहती है !
बद्रीनाथ से शतपथ तथा भागीरथ-खड़क नाम के हिमनदों से निकली अलकनंदा नदी उत्तराखंड के चमोली,टिहरी,तथा पौड़ी नामक जिलों की २२९कि०मि० लम्बी घाटी की यात्रा करती विष्णु-प्रयाग में धौली नदी को स्वयं में समाहित कर आगे नन्द-प्रयाग में नंदाकिनी नदी को साथ लेकर बहती अलकनंदा का कर्णगंगा अथवा पिंडर नदी से कर्ण-प्रयाग में संगम होता है !
केदारनाथ से होकर बहती मन्दाकिनी नदी रूद्र-प्रयाग में अलखनंदा में समाहित हो विशाल जल धरा के रूप में आगे बढती है !और आगे देवप्रयाग में अलखनंदा का मिलन भागीरथी से होता है !यही संगम गंगा के नाम से जाना जाता है ,यहीं से गंगा का जन्म होता है !यहाँ से लगभग २०० किलोमीटर का पहाड़ी सफ़र तय कर गंगा हृषिकेश होकर हरिद्वार में पतित-पावनी गंगा का स्वरुप ग्रहण करती है !
हरिद्वार से गड्मुक्तेश्वर फर्रुखाबाद कन्नौज कानपूर होते हुए इलाहाबाद पहुचती है !
हिमालय के यमुनोत्री नामक हिमखंड से निकली यमुना मार्ग में टोंस नदी ,गिरी तथा आसन नदियों के जल को समाहित करती शारदा तथा केन नदी की जलराशि के साथ इटावा के पास चम्बल नदी तथा हमीरपुर से बेतवा नदी के जल को साथ लेकर इलाहबाद में बाएँ ओर से गंगा में संगम करती है !यहाँ से गंगा काशी ( वाराणसी) में एक वक्र लेती है जिसके लिए वह यहाँ उत्तर वाहिनी के नाम से भी जानी जाती है !आगे मिर्ज़ापुर पटना भागलपुर के बीच सोन-गंडक-घाघरा-कोसी आदि नदियों को स्वयं में समाहित कर पश्चिम बंगाल के गिरिया नामक स्थान के पास गंगा दो शाखाओं में विभाजित होकर ,एक शाखा पद्मा नदी के नाम से दक्षिण-पूर्व की ओर बहती हुई फरक्का बाँध से निकल बांगलादेश में प्रवेश कर जाती है !तथा दूसरी शाखा भागीरथी के नाम से गिरिया से दक्षिण की ओर बहती हुई मुर्शिदाबाद से हुगली शहर होकर बहती है यहाँ इसे हुगली नदी के नाम से जाना जाता है !तद्पच्यात यह कोलकता हावड़ा होते हुए सुन्दरवन के भारतीय भाग में सागर में विलीन हो जाती है !दूसरी ओर पद्मा नदी बंगाल की खाड़ी में आ सागर में संगम करती है !इस संगम को गंगा-सागर के नाम से जाना जाता है !इस प्रकार गंगा गोमुख से गंगासागर तक लगभग २५०० किलोमीटर का सफ़र तय करती है !
अपने इस सफ़र में गंगा अनेक पहलुओं को छुती है कहीं धरती की प्यास बुझाती है तो कहीं कल-कल बहाकर अपने प्राकृतिक रूप से पर्यटकों का मन मोह लेती है !कहीं आस्था को परवान चढ़ती है तो कहीं मोक्ष-दायनी बन जीवन के शाश्वत सत्य से अवगत कराती है !कहीं मर्यादा का पाठ पढ़ाती है तो कहीं मर्यादा की सीमा लांघने का रौद्र भी !कहीं प्यासे की अंजुली में समां जाती है तो कहीं अज़ान का वुजू बन जाती है !कहीं अमृत तो कहीं आबे- ज़मज़म !जन्म से मृत्यु पर्यन्त मानव के साथ है गंगा …………!

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply