आह्वान
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ये कैसी आज़ादी रे भाई ?
बीच सड़क पर अबला लुट गई ,
शर्म किसी को न आई !
यह कैसी आज़ादी रे भाई ?
भूख से देखो गरीब मर रहा ,
लाखों टन अनाज सड़ रहा !
कौड़ी मोल बिक रहा यौवन ,
भीख मांग पल रहा है बचपन !
इनकी याद किसी को न आई ,
ये कैसी आज़ादी रे भाई ?
गाव की मत पूछ ,इसके रहनुमा सब सो गए ,
पानी नहीं -बिजली नहीं हालत बदतर हो गए !
जिसके कारण एक दिन हम घर से बे-घर हो गए !
भीड़ में शहर की दिल बुझा-बुझा सा लगता है ,
अपना वुजूद ही खुद से जुदा सा लगता है !
कभी-कभी तो खुद पे ही शर्म है आई !
ये कैसी आज़ादी रे भाई ?
आ गईं जबसे ज़म्हूरी ताकतें ,
बद से बदतर हो गए हालात हैं !
राजू बता कैसे हिफाज़त फ़स्ल की हो ?
बाढ़ ही जब खा रही हो खेत को !
किस खुदा को देंगें अब इसकी दुहाई ?
ये कैसी आज़ादी रे भाई ? ये कैसी आज़ादी ?
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